आदित्य ,!
तुम जीवन दाई हो
स्त्री - पुरुष के एक समान
इस परम ताप से जीवन
सुखद, प्रेम , स्नेह ,सजीव बना
तूम दिनकर !
रजनी तम को करते विदा
अनंत काल से ,नित्य ही
प्राणों में स्पंदन हो
तुम्हारा आगमन की अदितीय आहट !
प्रभा भरे सब हरियाली में
ओ प्रभाकर ! ऊष्मीय स्नेह के वर्त .
दिन के नरेश! तुम्हारी सत्ता
धरती माँ को आभा देती है |
पितृ देव के समान
दिव्य प्रकाश से ,अभिभूत
पुरुष ! तुम पूरक मेरे जीवन के ,
कर दो सबके मन को सूरज
हर नारी खिले चांदनी सी
दिवा कर दो हर चन्द्र को
न जाने क्यों डर रही हु ,
कालिमा और अंधकार से
हर आँखों में काली डोरी है
बना लो मुझ को अपनी उषा !
या ज्योति! बन में जल जाऊ
अब किरण बनू ,रश्मि बन जाऊ
कलुष मन प्रकाश बनाऊ
नर नारी हो अब एक समान
तुम सा अमृत मै बन जाऊ ,
भास्कर बनू मै तुम सी
इस वर्ष तो दर्पण बन जाऊ !
तुम जीवन दाई हो
स्त्री - पुरुष के एक समान
इस परम ताप से जीवन
सुखद, प्रेम , स्नेह ,सजीव बना
तूम दिनकर !
रजनी तम को करते विदा
अनंत काल से ,नित्य ही
प्राणों में स्पंदन हो
तुम्हारा आगमन की अदितीय आहट !
प्रभा भरे सब हरियाली में
ओ प्रभाकर ! ऊष्मीय स्नेह के वर्त .
दिन के नरेश! तुम्हारी सत्ता
धरती माँ को आभा देती है |
पितृ देव के समान
दिव्य प्रकाश से ,अभिभूत
पुरुष ! तुम पूरक मेरे जीवन के ,
कर दो सबके मन को सूरज
हर नारी खिले चांदनी सी
दिवा कर दो हर चन्द्र को
न जाने क्यों डर रही हु ,
कालिमा और अंधकार से
हर आँखों में काली डोरी है
बना लो मुझ को अपनी उषा !
या ज्योति! बन में जल जाऊ
अब किरण बनू ,रश्मि बन जाऊ
कलुष मन प्रकाश बनाऊ
नर नारी हो अब एक समान
तुम सा अमृत मै बन जाऊ ,
भास्कर बनू मै तुम सी
इस वर्ष तो दर्पण बन जाऊ !