Monday, January 5, 2015

आदित्य ..

आदित्य ,!
तुम जीवन दाई हो
स्त्री - पुरुष के एक समान
 इस परम ताप से जीवन  
 सुखद, प्रेम , स्नेह ,सजीव  बना
तूम दिनकर  !
रजनी तम को करते विदा
अनंत काल से ,नित्य ही
प्राणों में स्पंदन हो  
तुम्हारा आगमन की अदितीय आहट !
प्रभा भरे सब  हरियाली में
ओ प्रभाकर ! ऊष्मीय स्नेह के वर्त   .
दिन के नरेश! तुम्हारी सत्ता
धरती माँ को आभा देती है |
पितृ देव  के समान
दिव्य प्रकाश से ,अभिभूत
पुरुष  ! तुम पूरक मेरे जीवन के ,
कर दो सबके  मन को  सूरज
हर नारी खिले चांदनी सी
दिवा कर दो हर चन्द्र को
न जाने क्यों डर  रही हु ,
कालिमा और अंधकार से
हर आँखों में  काली डोरी है
बना लो मुझ को अपनी उषा !
या ज्योति! बन में जल जाऊ
अब  किरण बनू ,रश्मि बन जाऊ
कलुष  मन प्रकाश बनाऊ
नर नारी हो अब  एक समान
तुम सा अमृत मै  बन जाऊ ,
भास्कर बनू मै  तुम सी
इस वर्ष तो दर्पण बन जाऊ !



Tuesday, September 30, 2014

देहिक समझोते

मेरा प्रश्न यह है की जो औरते आज पुरुष पद पर है अर्थात उनके समान धन , बल , शोहरत प्राप्त कर चुकी है कभी किसी ने उनके जीवन का चित्रण किया गया है की वो पुरुष से कितना अलग अपना पुरुषत्व प्रदर्शित करती है , उनका मानक विचलन नही मद्द्य विचलन ही होता है ... उनके योन खुलेपन या पुरुष शोषण के तरीके कुछ अलग होते है क्या पुरुष से ??नोकरी , रोजगार , हर स्थान पर अपनी छदम आजादी के लिए देहिक समझोते करती नारी , आम बात है , कोन और कितने पुरुष उसे मजबूर कर रहे है , देह को वस्तु की तरह उपयोग करने की आजादी को किस प्रकार से तर्कसंगत बनाया जा सकता है .....